"आप मेरा दुख नहीं समझ सकते।"
कोई बैठा है, जैसे वह सुकरात या अरस्तू हो, और गहरे सायंसी विचार प्रकट कर रहा है। कोई दर्द और तकलीफ की प्रतिमा बना, एक दुखी आत्मा की तरह भटक रहा है। कोई मज़ाकिया चुटकुलों में भी दुनिया के दर्द ढूंढ रहा है, तो कोई किसी ठेले पर बिक रही किताब "दो हजार ज़ख्मी अशआर" में से शायरी सुनाकर खुद को जौन एलिया समझे बैठा है।
उम्र पूछो तो 19, 21 या 23 साल! लेकिन बातें ऐसी कि लगे मानो न तो मुंह में दांत हैं, न ही पेट में आंत।
"आप मेरा दुख नहीं समझ सकते, मुझे फलाने ने धोखा दिया।"
"अंकल, आप मेरा ग़म नहीं जान सकते, मेरे घरवाले मुझे परेशान करते हैं।"
"सर, आप मेरी तकलीफ नहीं महसूस कर सकते, मुझे फलां-फलां मानसिक समस्या है।"
अरे बच्चों,
किसने कहा तुमसे कि ये जिंदगी परफेक्ट है? यहाँ हर किसी की अपनी-अपनी तकलीफें और अपने-अपने इम्तिहान हैं। यह तुम्हारी गलतफहमी है कि तुम्हारा दर्द सबसे बड़ा है। आँखें खोलो, अपने पास मौजूद अनगिनत नेमतों को देखो, दूसरों के संघर्षों पर नजर डालो। तुम्हारे दिल से खुद-ब-खुद यह आवाज उठेगी.
"दुनिया में कितना ग़म है? ... मेरा ग़म कितना कम है!"
अभी तो तुमने बस जवानी की दहलीज़ पर कदम रखा है, अभी तो ज़िन्दगी शुरू हुई है। क्या अभी से हार मान लोगे? दूसरों से सहानुभूति बटोरोगे? जबकि तुम उस दौर में हो जहाँ पहाड़ को भी सूरमा बना सकते हो। खुद में हौसला पैदा करो, कुछ कर दिखाने का जुनून जगाओ। लेकिन नहीं, तुम्हें तो उदास रहने की आदत लग गई है, जो तुम्हारी प्रतिभा को जंग लगा रही है।
दूसरों को दोष देना छोड़ो, हालातों का रोना बंद करो। सच्चा विजेता वह नहीं जो लहरों के सहारे बहता रहे, बल्कि वह है जो लहरों को चीरकर अपनी राह बनाता है।
हराम काम मत करो, लेकिन अपनी जवानी को हलाल तरीके से खुलकर जियो। खुलकर हंसो, मुस्कुराओ, घूमो, खेलो, बचपना करो। बूढ़े नहीं हो तुम!
हम सबके अंदर एक नटखट बच्चा छिपा होता है, जो खुलकर जीना चाहता है। तुम इस बच्चे का गला क्यों घोंट रहे हो? क्यों इस दिखावे की परिपक्वता के चक्कर में अपनी जवानी बर्बाद कर रहे हो? इबादत करो, ज्ञान हासिल करो, चाहे धार्मिक हो या दुनियावी, लेकिन इस सबके बीच जीना मत भूलो।
इस लेख का मूल संदेश यह है कि आज के कई युवा बेवजह खुद को दुखी और गंभीर दिखाने में लगे रहते हैं, जबकि उनकी उम्र खुलकर जीने, सीखने, हंसने और जीवन का आनंद लेने की होती है।
मुख्य बिंदु:
1. अवसाद का दिखावा करना फैशन बन गया है – कई युवा खुद को जरूरत से ज्यादा गंभीर, उदास और दार्शनिक दिखाने की कोशिश करते हैं, जबकि असल में उनकी समस्याएं इतनी बड़ी नहीं होती।
2. दूसरों को दोष देना बंद करो – कुछ युवा अपनी परेशानियों के लिए माता-पिता, समाज या हालातों को दोष देते हैं, लेकिन असल में जीवन चुनौतियों से भरा होता ही है। हर किसी के अपने संघर्ष होते हैं।
3. अपने दुख को सबसे बड़ा मत समझो – जब हम दूसरों के हालात देखते हैं, तो समझ आता है कि हमारी तकलीफें इतनी बड़ी नहीं हैं।
4. जिंदगी का आनंद लो – अपनी जवानी को व्यर्थ न करो, बल्कि हंसो, खेलो, घूमो और अपनी ऊर्जा को कुछ सकारात्मक बनाने में लगाओ।
5. लहरों के साथ मत बहो, अपनी राह खुद बनाओ – असली सफलता उन्हीं को मिलती है, जो हालातों से लड़कर आगे बढ़ते हैं, न कि उन्हें कोसते रहते हैं।
निष्कर्ष:
लेख हमें यह सिखाता है कि दुखी रहने की आदत छोड़कर, अपनी जवानी को सकारात्मक तरीके से जीना चाहिए। जीवन कभी परफेक्ट नहीं होता, लेकिन शिकायत करने से बेहतर है कि हम इसे पूरी ऊर्जा और जोश के साथ जिएं!